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संस्थापक सह अध्यक्ष डॉ रमेश मोहन शर्मा "आत्मविश्वास" उपाअध्यक्ष १ . डॉ ब्रह्मदेव ब्रह्म २. श्री रत्नेश शर्मा "अंजन" कोषाध्यक्ष श्री श्रवण बिहारी महासचिव डॉ मुकेशचन्द्र शर्मा "अधिवक्ता" उप महासचिव श्री अनिल कुमार मंडल "बेकार" कार्यकारिणी सदस्य १. श्रीमती सविता देवी २. श्रीमति उषा देवी ३. डॉ कंचन माला ४. श्री गुलशन कुमार ५. हरी प्रमोद शर्मा "हरिताभ" परामर्श संरक्षक श्री आनन्दी प्रसाद मंडल (समाजसेवी) तकनीकि निर्देशन स्फोटाचार्य आशीष आनन्द अंगिका भाषा प्रचार अभियान समिति डॉ रमेश मोहन शर्मा "आत्मविश्वास" डॉ ब्रह्मदेव ब्रह्म अधिवक्ता प्रभाश्चंद्र मतवाला साथी सुरेश सूर्य श्रवण बिहारी अनिल कुमार मंडल "बेकार" कवि महेंद्र निशाकर कपिलदेव ठाकुर "कृपाला" योगेन्द्र मंडल "कर्मयोगी"
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नाम - डॉ रमेश मोहन शर्मा "आत्मविश्वास"
समादरणीय बन्धुवर ! हमारे हृदयरूपी फुलवारी में वर्षो से खिल रहे पुष्पों के सुगंध हमें मादकता की उच्चतम शिखर पर अभिभूत करने वाले युगपुरुषरूपी पुष्पों में एक युगपुरुष डॉ. रमेश मोहन शर्मा "आत्मविश्वास" जी हैं। जिन्होंने अपने सुकृत्यों से न जाने मुझ जैसे कितने सुहृदयों को अपनी मधुर सुगंध से सुवासित कर रहे होंगे। इनकी शिक्षा-दीक्षा विषयक कुछ भी कहना मानो उच्चतम उपाधियों को शीलभंगिमा से ओतप्रोत करना ही होगा। ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी इस संसार को एक नया मार्ग , एक नयी दिशा दिखाने को जो महान आत्मा अवतरित होते हैं उन्हें ही हम "युगपुरुष अथवा अवतार" की सर्वोत्कृष्ट भावों से सम्बोधित करते हैं। भारतवर्ष के प्रथम अंगिका ध्वनि वैज्ञानिक तथा अंगिका के "जनक" की अतुलनीय उपाधियों से सम्मानित "डॉ. आत्मविश्वास जी " ने संसार के लिए एक ऐसी नयी दिशा एवं एक ऐसा मार्ग प्रशस्त किया है जिसकी रेखा वर्तमान समय से लेकर वैदिक युगों तक अपनी स्वर्णमय प्रकाशपुंज से प्रकाशित कर रही है। इनकी "अनुस्वर" की स्थापना ने न केवल व्याकरण को आधार प्रदान किया है , न केवल ध्वनि विज्ञान को सुसज्जित किया है बल्कि भारत के भविष्य के लिए इन्होंने वृहद् रोजगार का द्वार खोल दिया है। इतना ही नहीं, इनके "अनुस्वर" की स्थापना से ऋग्वेदों को भी पूर्णता प्राप्त हुई है। जिस बिन्दु की पराकाष्ठा को प्राप्त करने में भगवान सनत्कुमार ने उस बिन्दु को "स्वरोवाव्यंजनोवा" कहकर तथा महर्षि पाणिनि ने "अयोगवाह" कहकर सम्बोधित किया। उसी बिन्दु को इन्होंने "स्वर" की संज्ञा में लाकर इसे पूर्णता प्रदान किया है। डॉ. आत्मविश्वास जी ने अपने अन्वेषण में यह दृष्टिगोचर किया कि भगवान सनत्कुमार और महर्षि पाणिनि समुद्र की अथाह गहराइयों के तल तक जाकर भी उसकी सतह को स्पर्श किये बगैर ही वापस लौट आये। हमने भी कुछ ऐसा ही आभास किया परन्तु हमारी दिशा भिन्न है। इस आभास के द्वारा न कि हमने इन्हें पुष्टि प्रदान किया बल्कि इनके अन्वेषण से हमने भी स्वयं को पुष्ट होने की सामर्थ्यता प्राप्त हुई है। हमारी चेतना यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं करती बल्कि गौरवान्वित होती है कि "डॉ. आत्मविश्वास" भगवान सनत्कुमार एवं महर्षि पाणिनि के ही अवतार हैं। यदि हम विकासवाद के सिद्धांत का भी अवलोकन करें तथा गीता के उस श्लोक का अवलोकन करें जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि हमारा अंतिम संकल्प ही दूसरे जन्म का सार होता है। इस आधार पर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। हमारी चेतनागत विकास ही हमारे जन्म का उद्देश्य है तथा यही प्रकृति का नियम भी है। हमारी चेतना एक जन्म में जहाँ तक विकसित हो पाती है, दूसरे जन्म में हम वहीं से प्रारंभ करते हैं। यदि विशेष रूप में किसी खास विषय पर हमारा अनुसंधान चल रहा हो तो तब तक हम जन्म लेते रहते हैं जब तक हमारा अनुसंधान सम्पूर्ण न हो जाय। तब तक हमारा विकास अवरूद्ध रहता है जबतक हमारे शुद्ध मन की अभिव्यक्तियों की पूर्ति न हो जाय। अशुद्ध मन हमें अधोगति तथा शुद्ध मन हमें उर्ध्वगति प्रदान करता है। इस आधार पर भी डॉ. आत्मविश्वास ने यह सिद्ध कर दिया है कि भगवान सनत्कुमार और महर्षि पाणिनि की आत्मा ने ही डॉ. आत्मविश्वास के रूप में जन्म लिया है। ऐसे युगपुरुष, अवतारीपुरुष डॉ. आत्मविश्वास जी को हमारा शत्-शत् नमन है। देश की कानून व्यवस्था भले ही इन्हें अंगिका के ध्वनि वैज्ञानिक और अंगिका के जनक से अलंकृत करे परन्तु सत्य की तथा हमारी दृष्टि में डॉ. आत्मविश्वास जी एक प्रकाण्ड ध्वनि वैज्ञानिक एवं ध्वनि के जनक हैं, क्योंकि जो महान आत्मा भगवान सनत्कुमार और महर्षि पाणिनि की हो वे आत्मा डॉ. आत्मविश्वास के रूप में भी देशकालातीत ही हो सकते हैं। इनके ज्ञान तथा अनुसंधान की रेखा किसी भी विषयों से आबद्ध नहीं बल्कि विषयातीत ही है। अत: डॉ. आत्मविश्वास की कृति ब्रह्माण्डव्यापी ही है, ब्रह्म के समान व्यापकता से एकात्म है, अद्वैत है, आत्मैक्य है। डॉ. आत्मविश्वास जी के इन अलौकिक सुकृत्यों ने ईश्वर से तारतम्यता स्थापित कर हमें ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को एक नया सूर्योदय प्रदान किया है, एक अलौकिक आभा प्रदान किया है। इनकी शैक्षणिक जीवनशैली को सुनकर हमारा मन प्रफुल्लित एवं गदगद ही नहीं होता वरन् प्रफुल्लित भी प्रफुल्लित हो जाता है और गदगद भी गदगद हो उठता है। गदगद के हृदय को भी झंकृत कर देने वाली डॉ आत्मविश्वास रूपी वीणा की तान यह सिद्ध कर देती है कि इनके हृदयग्रन्थियों में साक्षात् माता सरस्वती का वास है और इनके जीवन की साधन इन्हें साधना के उच्चतम शिखर पर पदासीन करती है । साथ ही साथ इनका कर्म एक सर्वश्रेष्ठ कर्मयोगी के जीवन को चरितार्थ करती है। ऐसे महायोगी को हम पुनः बारम्बार नमन करते हैं और अंततः हमारा हृदय स्त्रोक्तम् गाने को विवश हो जाता है - "या देवी सर्वभूतेषु डॉ. आत्मविश्वासरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥ - स्फोटाचार्य
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