
इस पुस्तक में सभी ज्ञान से ओत-प्रोत वाक्यों के मूल सार को मैंने
प्रभु की कृपा से “स्मृति-रामायण” के तरह ही भाव एवं स्वर को पद्य में
अभिव्यक्त किया है, इस चन्द पद्य में ही परमपिता परमात्मा के तत्वस्वरुप,
सत्य-धर्मं तथा आत्मज्ञान का भाव स्पष्ट है :-
!! सत्यायन !!
ज्योतिस्वरूप हि तत्वस्वरूपा, सूक्ष्म-परमात्म तत्व नाना रूपा !
ॐ शब्द इक सत्य स्वरूपा, शब्द अनेक है आत्म स्वरूपा !! १ !!
आत्म स्वरुप है सब जग-जीवा, जीवस्वरुप है पिंड-ब्रह्मंडा !!
सकल सृष्टि है पिंड सामवा, सकल पिंड ज्योति विच पावा !! २ !!
ज्योति-सूक्ष्म-स्थूल सामना, कहत अनंता नहि जग जाना !
ऋषि-मुनि-नारद संग सब देवा, ज्ञानी-ब्रह्मज्ञानी दरस नहि पावा !! ३ !!
पढ़ी-पढ़ी सबहि वेद और ग्रन्था, पावहि पार न प्रभु के सांता !
वेद समग्र सब पढ़ी पुराणा, पर न भई जब आत्मज्ञाना !! ४ !!
जाई स्कन्द को कथा सुनाया, तबहि स्कन्द नारद समझाया !
जो तूने करी सीख-बखाना, ये सब नाम और रूप सामना !! ५ !!
आत्म-परमात्म न पृथक बताया, मठाकाश-घटाकाश समझाया !
ये सब है परब्रह्म की माया, करि विस्तार तत्वज्ञान बताया !! ६ !!
बहुत संकुचित प्रभु हमारा, सरे सृष्टि के एक आधारा !
देखत सृष्टि है प्रभु के काया, तत्व-सृष्टि है प्रभुहि समाया !! ७ !!
नहि कोई देत नहि लोक है दूजा, आत्मज्ञान सम ताप नहि पूजा !
एक विलक्षण चाहुओर अकेला, नहि दूजा आच्छादित करने वाला !! ८ !!
यज्ञ-याग्य पुण्य कर स्वर्ग जो जाई, भये अंत जब लौटहि आई !
करि योग-कर्म विकर्म न पवै, आत्मज्ञानी फिर लौट न आवै !! ९ !!
भुत-भ्रम सब भेद है सांता, आत्मज्ञानी बनो कहै अनंता !
धरो ध्यान पिंड तत्वज्ञान अधरा, भवसागर से प्रभु पार उतरा !! १० !!
सरे सृष्टि इक उदर समाया, पर माया का पार न पाया !
ज्योतिस्वरूपहि तत्वस्वरूपा, स्थूल-परमात्म-तत्व नाना रूपा !! ११ !!
सर्व सृष्टि के सार है, मूल तत्वधार, आत्मज्ञान आधार है तत्वस्वरूप के सार !
जपो पिंड ओंकार सदा, धई के प्रभु का ध्यान, गुरु कहे ना गुरु कोई आत्मा गुरु सामान !! १ !!
दया धर्मं हीं उत्तम है, शांत पराक्रम जान, आत्मज्ञान श्रेष्ठ ज्ञानो में, धर्मं न सत्य समान !
अविनाशी शक्तिस्वरुप प्रकृति, अव्यक्त-व्यक्त मान, कार्य-कारण का आत्मा है, नर-नारायण जान !! २ !!
आत्मा अत्यंत विशाल है, दिव्य अचिन्त्य रूप !
कहे नारायण नारद से, आत्मा ही पूज्य है सगुन-निर्गुण रूप !! १ !!
-आत्मज्ञानी अनातात्मानंद सरस्वती
!! प्रभार : स्फोटाचार्य आशीष आनन्द !!